दलित सिर्फ दलित ही बना रहना चाहता है, चाहे उसे
किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री मना दो, लोकसभा अध्यक्ष बना दो या फिर भारत का
होम मिनिस्टर बन जाये ! चाहे लोकसभा की 131 या विधानसभा की 1125 सीट
रिजर्व सीटों पर लगातार चुनाव जीतकर विधायक या सांसद बनाने वाले भी, दोवारा
जनरल सीट से नहीं लड़ना चाहते और बार-बार चुनाव जीतकर भी कथित तोर पर दलित
ही रहना चाहते हैं, वो अपने आप को दलित कहने में फक्र महसूस करते है, क्या
करें वोट बैंक का सवाल जो है ! यानि दलित किसी जाति या गरीव या दावे-कुचले
व्यक्ति का नाम नहीं बल्कि एक मानसिकता का नाम है ! कैसा लोकतंत्र है ये,
जिसमे एक करोड़पति व्यक्ति कथित तौर पर दलित है और एक भीख मागने वाला भी
कथित तौर पर उच्च बोला जाता है !
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